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'सहसराम' का नाम प्रागैतिहासिक काल से जुड़ा हुआ है | 'सहस्त्राबाहु' और 'परशुराम' का पुरुषार्थी इतिहास इस शब्द को भव्यता और दिव्यता प्रदान करता है जिससे 'सहसराम'शब्द को और अधिक उदात्त और प्रभविष्णु हो उठा | क़ालान्तर में बौद्ध विहार के 'सहस्त्रआराम' से इसे जोड़कर तथागत के चरणस्पर्श से मांग़लिक बना दिया गया और गौतम के पदक्षेप से सहसराम की धरती सर्वमंगला बन गयी | मुगलकाल के सन्स्थापक बाबर के पुत्र हुमायुं के हाथ से भारत का सिहासन शेरशाह सुरी ने हस्तगत कर लिया | शेरशाह सूरी सहसराम की धरती का पुत्र था जिसने अपने पौरुष और दिव्यशक्ति से सहसराम के गौरव को पुरे हिन्दुस्तन में फौलाया | सहसराम भरत के भाग्य का मुकुट बन बैठ | अपने कुशल और प्रशासकीय क्षमता के बल पर दिल्ली का यह सम्राट अपने कार्यो और उपलब्धियों से देश का मान बढाया | सहसराम क़ी भौगोलिक संरचना में पर्वत श्रखला, हरे भरे जंगलो, नदियो, झरनो, आदि का योग है | 'कैमूर' की पर्वतमालाऍ इसे संरक्षा और सुरक्षा ही नही देती, यहां कि जनता और गरीबों को भोजन की सामग्री भी उपलब्ध कराती है, हरे - हरे कानन और जंगल पशु - पक्षियों को जीवन देते है |'सहसराम' का प्राकृतिक सौंदर्य नैसर्गिक आनंद - दाता है | इसकी माटी में सूफियों - संतो और तपस्वियों को अध्यातमिक वाणिय़ों की अनुगूंज सम्पुटित है | इस तरह इसमें भैतिकता और औधोगिक सम्पदा के संसाधन छिपे है | इस तरह प्रगौतिहासिक काल से 'सहसराम' विकसित और संबर्दित होता हुआ 'सासाराम' के रुप में प्रतिषिठत और स्थित है | हजारों वर्षो से वर्षा - हिम - पात और आंधी के थपेड़ों को झेलता हुआ, संघर्षो और उतार - चढाव से जन्मा सहसराम सन १९७२ में रोहतास जिला का मुख्यालया बना |
रोहतास के जिला बनने से पूर्व सन १९७० मे 'सहसराम् नगर की बढती हुई जन्संख्या एंव नारी शिक्षा को गति देने के लिए इस नगर के शिक्षाविदों और शिक्षा प्रेमियों के प्रबल समर्थन पर श्री शंक़र महाविधालय, तकिया, सहसराम का शुभारम्भ हुआ | स्व० जीत नारायण सिंह श्री शंक़र महाविधालय के संस्थापक सचिव थे | उनके अथक प्रयास से श्री शंक़र महाविधालय का नाम रौशन हुआ तथा महाविधालय के स्थापना से लेकर बिहार सरकार के हैंडओवर तक संस्थापक सचिव रहे | सचिव के दान से मगध विश्वविधालय के आदेश पर इस महाविधालय ने १९७० में सी० बी० आई० २६९४ दिनांक ०४.०३.७१ को ७०,०००.०० (सत्तर हजार रुपये)श्री शंक़र महाविधालय तकिया, सहसराम के नाम से विश्वविधालय मे कला/और शिक्षा संकाय के संबंधन हेतु सुरक्षाकोष में जमा किया और शिक्षाशास्त्री के छात्रों की परीक्षाऍ हुई | इस परीक्षा में माहाविधालय के अधिक - से - अधिक छात्र योग्यता क्रम में विशिष्ट स्थान प्राप्त किये | शिक्षा संकाय के साथ कला और के संबंधन संबंधी लगायी गयी शर्तो के आधार पर सन १९७३ ई० में महाविधालय को मगध विश्वविधालय, बोध गया से संबंधन प्राप्त हुआ | १९७३ से कला / में छात्रों का नामांक़न हुआ | पूर्व से शिक्षा संकाय के छात्रों की परीक्षा और पठन-पाठन भी श्री शंकर उ० मा० विधालय द्वारा समर्पित शिक्षकों, पुस्तकालय एंव उपकरणों की मदद से चलता रहा | सन १९७३ में श्री शंकर उ० मा० विधालय तकिया से यह कांलेज अनेक संघर्षो और झंझावातों को पार कर नये बने भवन में स्थानांतरित हो गया | योग्य और अनुभवी शिक्षकों के अध्यापन और त्यागमय जीवन से छात्र - छात्राओ को विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ |परीक्षाफल भी सर्वोत्तम रहा जिसके चलते सत्र १९७४-७५ में नगर की उन छात्राओ ने नामांक़ान लिया जिनकी आर्थिक स्थिति सहसराम से बाहर बड़े शहरों और महानगरों में पढने की नही थी | छात्राओं को पढने की सुविधा दूरस्थ शांन्ति प्रसाद जैन कांलेज सहसराम के अतिरिक्त्त स्थानिय शहर में नही थी | सर्वप्रथम श्री शंकर कांलेज तकिया सहसराम में के छात्राओं को पढने की सुबिधा उपलब्ध हुई | श्री शंकर कांलेज तकिया सहसराम दुसरा प्रगतिशील सम्बंधन प्राप्त कांलेज था | यह कांलेज अपनी पुराने कांलेज के विरोध और प्रतिद्वदिता के सघर्ष से उपर उठा और दिनानुदिन अपने अच्छे शिक्षको के अध्ययन अनुशासन, सुशासन और व्यवस्था के फलस्वरुप आगे खुलने वाले नय कांलेजो के लिए मील का पत्थर बना |'शंकर' का बचपन संघर्षो की झंझा मे उड़ नही ग़या बल्कि वह अपनी उड़ान में तिनको के सहारे दुसरों की आंख की किरकिरी बन गया | किन्तु यह कांलेज नगर की आम जनता का आकर्षण क़ा केन्द्र रहा | अपने अल्पवय में ही इसने भीमकाय प्रतिद्वन्दियों को धुल चटा दिया, जिनके मनसूबे इसे स्थापित नही होने देने के थे, वे भी चारों खाने चित्त होकर आकाश देखने लगे | संबंधन का दशक भी पूरा नही हुआ क़ि यह कांलेज छात्र संख्या बल, परीक्षाफल, व्यवस्था, अनुशासन सह शिक्षा पठन-पाठन की उत्तमता के आधार पर विश्वविधालय, बोध गया का अंगीभूत इकाई (२६ नवम्बर १९८०) घोषित हुआ |कला और वानिज्या की पढाई स्नातक स्तर तक होने लगी |छात्रों और छात्राओं की संख्या उत्तरोत्तर बढने लगी |जिला के पशिचमी क्षेत्र, दुर्गावती और भभुआ के छात्र तथा पूरब के डिहरी-ओन-सोन, नौहटटा,तिलोखर, परछा तक के छात्र इस महाविद्यालय मे नामांक़ान कराने लगे|उत्तर दिशा मे नोखा -संझौली से छात्रो क इसलिए आना संभव हो रहा था, क्योकि जिला मे पठन पाठन क सिलसिला और अनुशासन व्यवस्था इस कांलेज में अच्छी थी |परीक्षाफल किसी पुराने कालेज के लिऐ चुनौति बन बैठा |यहां क़ॅ प्रतिभावन और मेघावी छात्र्-छात्राऐ, डाक्टर और इंजीनियर ही नही हुए, बहुत से छात्र आइ०ए०एस० और आई०पी०एस० भी हो गए है | इस क़ांलेज के बहुत से ऍसे छात्र है जो अपनी राजनीतिक प्रतिभा के बल पर बिधायक, एम० पी० और मंत्री भी हुए | उन सभी के चलते कांलेज अपना गौरव अनुभव करता है |
छात्र / छात्राओं के पठन-पाठन दो सिफ्ठो में सुबह ७:३० से ४:३० बजे तक चलता आ रहा है | आज यह कांलेज संसाधनों की कमी के बावजूद अपनी व्यवस्था, पठन-पाठन और अनुशासन के बल चर्चित और लोकप्रिय है | जहां परीक्षाफल प्रतियोगी कांलेजों से सर्वोत्तम है | |
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